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Naga Sadhu Life: हाड़ जमा देने वाली सर्दी में भी बिना कपड़ों के रहते है नागा साधु, जानिये इनके जीवन से जुड़ी रहस्यमयी बातें

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Naga Sadhu Life: हाड़ जमा देने वाली सर्दी में भी बिना कपड़ों के रहते है नागा साधु, जानिये इनके जीवन से जुड़ी रहस्यमयी बातें
Jhalko Media, New Delhi: Naga Sadhu Life Facts: सनातन धर्म में साधु-संतों का महत्व हमेशा से अधिक रहा है, जिन्हें ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। साधु-संत अपने आचार्य से सिखते हैं और भौतिक सुखों का त्याग कर सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हैं। लाल, पीला, और केसरिया रंग के वस्त्रों में सजे होते हैं, लेकिन नागा साधुओं की विशेष बात यह है कि वे कभी भी कपड़े नहीं पहनते। इसमें कई कारण होते हैं: प्राकृतिक जीवनशैली: नागा साधुओं को प्राकृतिकता और आत्मा के साथ एक होने की भावना होती है। इसलिए, वे वस्त्रों का त्याग कर निर्वस्त्र जीवन में रहते हैं। आत्मसात: इनका मानना ​​है कि इंसान निर्वस्त्र जन्म लेता है, और इस रूप में रहना प्राकृतिक है। इससे वे अपने आत्मसात को बढ़ाते हैं और सामाजिक और भौतिक बंधनों को त्यागते हैं। भौगोलिक और धार्मिक आदर्श: नागा साधुओं को योग, तप, और साधना के माध्यम से अपने शरीर को धन्य माना जाता है, जिसके लिए उन्हें वस्त्रों की आवश्यकता नहीं होती।

क्या नागा साधुओं को ठंड नहीं लगती?

हाँ, नहीं लगती! नागा साधु तीन प्रकार के योग करते हैं, जिसमें से एक ताप योग है जो उन्हें ठंड से बचाने में मदद करता है। उनकी आत्मसात, विचार शुद्धि, और योगाभ्यास के कारण, वे ठंडी महौल में भी सुरक्षित रहते हैं।

कैसे बनते है नागा साधू?

नागा साधु बनने की प्रक्रिया में कुल 12 साल लगते हैं। जिसमें वह नागा संप्रदाय में शामिल होने के लिए जरूरी जानकारी जुटाने में 6 साल बिताते हैं। इस दौरान वह केवल लंगोटी पहनते हैं। कुंभ मेले में नागा साधुओं का एक समूह इकट्ठा होता है। इसके बाद वे लंगोटी का भी त्याग कर देते हैं।

जानिये नागा साधुओं से जुड़े रोचक तथ्य:

  • नागा साधु बनने की प्रक्रिया में 12 साल लग जाते हैं, जिसमें 6 साल को महत्वपूर्ण माना गया है. इस अवधि में वे नागा पंथ में शामिल होने के लिए वे जरूरी जानकारियों को हासिल करते हैं और इस दौरान लंगोट के अलावा और कुछ भी नहीं पहनते. कुंभ मेले में प्रण लेने के बाद वह इस लंगोट का भी त्याग कर देते हैं और जीवनभर नग्न अवस्था में ही रहते हैं.
  • नागा साधु बनने की प्रक्रिया में सबसे पहले इन्हें ब्रह्मचार्य की शिक्षा प्राप्त करनी होती है. इसमें सफल होने के बाद उन्हें महापुरुष दीक्षा दी जाती है और फिर यज्ञोपवीत होता है. इसके बाद वे अपने परिवार और स्वंय अपना पिंडदान करते हैं. इस प्रकिया को ‘बिजवान’ कहा जाता है. यही कारण है कि नागा साधुओं के लिए सांसारिक परिवार का महत्व नहीं होता, ये समुदाय को ही अपना परिवार मानते हैं.
  • नागा साधुओं का कोई विशेष स्थान या मकान भी नहीं होता. ये कुटिया बनाकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं. सोने के लिए भी ये किसी बिस्तर का इस्तेमाल नहीं करते हैं बल्कि केवल जमीन पर ही सोते हैं.
  • नागा साधु एक दिन में 7 घरों से भिक्षा मांग सकते हैं. यदि इन घरों से भिक्षा मिली तो ठीक वरना इन्हें भूखा ही रहना पड़ता है. ये पूरे दिन में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करते हैं.
  • नागा साधु हिन्दू धर्मावलंबी साधु होते हैं जोकि हमेशा नग्न रहने और युद्ध कला में माहिर के लिए जाने जाते हैं. विभिन्न अखाड़ों में इनका ठिकाना होता है. सबसे अधिक नागा साधु जुना अखाड़े में होते हैं. नागा साधुओं के अखाड़े में रहने की परंपरा की शुरुआत आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी.